


मध्य प्रदेश, जो कभी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) का एक मजबूत गढ़ माना जाता था, आज उसके लिए एक चुनौतीपूर्ण राज्य बन गया है। पिछले कुछ दशकों में कांग्रेस का जनाधार राज्य में लगातार घटता जा रहा है, जिससे उसकी राजनीतिक पकड़ कमजोर हुई है। इस रिपोर्ट में कांग्रेस के सिमटते जनाधार के पीछे के कारणों, इसके प्रभावों और संभावित भविष्य की रणनीतियों का विश्लेषण किया गया है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
1950-1990: कांग्रेस ने स्वतंत्रता के बाद लंबे समय तक मध्य प्रदेश की सत्ता पर राज किया। यह दल किसान, आदिवासी और सामान्य वर्गों के बीच लोकप्रिय था।
1990 के बाद: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उभार ने कांग्रेस के वर्चस्व को चुनौती दी। 2003 से 2018 तक, भाजपा ने राज्य की राजनीति पर मजबूत पकड़ बनाई।
2018 का अपवाद और 2020 की विफलता
2018 विधानसभा चुनाव: कांग्रेस ने भाजपा को हराकर 114 सीटें जीतीं और कमलनाथ मुख्यमंत्री बने।
2020 में सरकार गिरना ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों के पार्टी छोड़ने के बाद कांग्रेस की सरकार गिर गई और भाजपा फिर सत्ता में आ गई।
जनाधार सिमटने के मुख्य कारण
1. नेतृत्व की अस्थिरता:
कांग्रेस में लंबे समय से एक स्पष्ट और स्वीकार्य राज्यस्तरीय नेतृत्व का अभाव है। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह जैसे वरिष्ठ नेताओं पर निर्भरता, युवा नेतृत्व को आगे नहीं आने देती।
2. गुटबाज़ी और अंतर्कलह:
सिंधिया गुट के अलग होने के बाद पार्टी में और अधिक मतभेद उभर कर सामने आए। यह जनता में पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचाता है।
3. संगठनात्मक कमजोरी:
भाजपा के मुकाबले कांग्रेस का जमीनी स्तर पर संगठन कमजोर हो गया है। बूथ स्तर पर कार्यकर्ता सक्रिय नहीं हैं।
4. विकास की विश्वसनीयता की कमी:
भाजपा ने शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में विभिन्न जनकल्याणकारी योजनाओं से जनता को साधा है, जबकि कांग्रेस ऐसा प्रभाव नहीं बना सकी।
5. विपक्ष के रूप में निष्क्रियता:
विधानसभा में विपक्ष की भूमिका निभाने में कांग्रेस कमजोर दिखती रही है। जनता को स्पष्ट विकल्प नहीं मिल रहा।
प्रभाव
कांग्रेस राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में तेजी से अपनी पकड़ खो रही है।
आदिवासी और पिछड़ा वर्ग, जो कभी कांग्रेस का आधार माने जाते थे, अब भाजपा की ओर शिफ्ट हो रहे हैं।
कांग्रेस युवाओं और नए मतदाताओं में भरोसा नहीं बना पा रही है।
भविष्य की संभावनाएँ और रणनीतियाँ
1. संगठन का पुनर्निर्माण
ब्लॉक और बूथ स्तर तक कार्यकर्ताओं को पुनर्सक्रिय करना।
2. युवा नेतृत्व को बढ़ावा
क्षेत्रीय युवा नेताओं को सामने लाकर जनमानस से जुड़ना।
3. स्थायी और स्पष्ट नेतृत्व
एकमत से ऐसे चेहरे को सामने लाना जो जनता में विश्वसनीय हो।
4. सकारात्मक विपक्ष की भूमिका
भाजपा की नीतियों की सटीक आलोचना के साथ-साथ वैकल्पिक योजनाओं को प्रस्तुत करना।
5. डिजिटल और ग्रासरूट कैम्पेन
सोशल मीडिया और गांव-गांव जनसंपर्क के माध्यम से भरोसा फिर से कायम करना।
मध्य प्रदेश में कांग्रेस के निरंतर सिमटते जनाधार के पीछे कई राजनीतिक और संगठनात्मक कारण हैं। अगर कांग्रेस राज्य में पुनः अपनी खोई हुई जमीन वापस पाना चाहती है, तो उसे संगठनात्मक सुधार, प्रभावी नेतृत्व और जनता से सीधा संवाद स्थापित करने की आवश्यकता है। वरना आने वाले वर्षों में उसकी स्थिति और भी कमजोर हो सकती है।